मंगलवार, 22 जून 2010

क्या यही कानून है

क्या यही कानून है | हम सब की जुम्मेदारी है ऐसे कानून के खिलाफ आवाज उढ़ाने की , एक दिन सबेरे ९ बजे के आस पास मै बच्चो को स्कूटर से स्कूल छोड़ कर लौट रहा था | श्री मती जी ने  वापसी में सब्जी लेकर आने का हुकम दिया, तो सब्जी मंडी मुड गया और स्कूटर अभी खड़ी ही कर रहा था ,कि अचानक सामने से आ रही ट्रक ने आगे जा रही मोटर साइकिल  को टक्कर मार दी और भाग निकला |
मैने सारा दृश्य अपनीआखोंसे देखा लोग बागपकड़ो पकड़ोकीआवाज लगा कर दौड़ पड़े और मोटर साइकिल वाले को घेर कर आपस में बाते करने लगे मुझसे भी रहा न गया .मैने सब्जी वाले से कहाँ भैया जरा स्कूटर का ध्यान रखना मै देख कर आता हूँ , सब्जी वाला बोला किस -किस का ध्यान रखूं .यहाँ तो आये दिन इस तरह का एक्सिडेंट होता है, लोग वाग आगे बढ़ते है और जब गवाही देने का नम्बर आता है तो मुह घुमा कर कहते है मै ने तो देखा ही नहीं ,मुझे नहीं मालूम आदि -आदि ,बाबूजी आप भी देख आये मगर स्कूटर की मै जुम्मेदारी नहीं लेता | मैने कहाँ कोई बात नहीं इंसानियत भी कोई चीज होती है .कह कर भीड़ की तरफ बढ़गया चारोतरफसेभीड़नेउस व्यकित को घेर लिया था , ट्रक कीटक्कर से पिछला पहिया उसकी कमर से निकल गया वह जमीन मेपड़ा झट पटारहा था ,पानी पानी की आवाज आ रही थी ,भीड़ में एक नेउसे पानी  देना चाहामगर साथ वाले नेमना करदिया ,यह पुलिश केस है दूर रहो पुलिश के लफड़े में मत पड़ना |मन में आया कि आगे बढ़ कर एक झापड़ रसीद कर दू और मैने बोतल झीन कर उस व्यक्ति के मुह में पानी डाल दिया,|बड़ी हसरत भरी निगाह सेहमारी तरफ देखा ,और घर पर फोन करने को कहाँ किसी तरह से फोन नम्बर बताया .मैने जैसे  हीउसके घर पर फोन किया सभी लोग घर से दौड़ पड़े |इतने में किसी ने पुलिश को फोन कर दिया , मौके पर पुलिस आ गई .आते ही इन्स्पेटर ने बड़े रुआब से पूछा भीड़ से किसी ने ट्रक वाले का न० नोटकिया |किस रंग की थी .किघर से आ रही थी किघर गई आदि सवाल कर फालतू की जानकारी करने लगे .और वह बेचारा तडपता रहा .उसकी ओर देखा भी नहीं और न ही उसको किसी प्रकार की फर्स्ट ऐड या अम्बुलेंस आदि के लिय फोन किया|
भीड़ से पूछने लगे किसी ने इसको छुआ तो नहीं , बड़ी देर से मै उसकी बकवास सुन रहाथा ,मैने आगे बढ़ करकहाँ जी मैने इसे पानी पिलाया था .आप इतनी देर से आये है इसे हॉस्पिटल ले जाये ,न कि आप इसी समय सभी जानकारी कर लेगे |
इन्स्पेटर ने आखें तरेरी और मेरी तरफ देख कर कहाँ .ये मिस्टर अपना काम कीजिये ,यह पुलिस केस है मुझे मालूम है कि क्या करना है .मुझे मत समझाई ये .अभी तो देखना है कि यह ए क्सीडेंट का केस किस थाने के अन्डर आता है तथा अब उसने मरीज की तरफ रुख किया और बोला अरे यह तो चौक थाने का केस बनता है | रामसिंह इन्स्पेटर पान्डेको फोन कर दो ,यहाँ  हमारा काम नहीं कह कर अपनी गाडी में बैढ़ गया |
अभी तक वह बेचारा तडप रहा था .मगर शरीर से काफी खून बह जाने के कारण उसने दम तोड़ दिया , इतने में उसके घर से    भी आ गये ,इन्स्पेटर पान्डे भी तभी अपने लाव लश्कर के साथ प्रगट हो गये ,अरे यह तो मर गया इसका पोस्ट मार्टम होगा | इतना कहने के बाद कल्लू इसकी लाश को पोस्ट मार्टम हॉउस ले जाओ मै अभी पहुचता हूँ कह कर जीप में बैढ़ गये .और चलते बने |
यह सब खेल आधा घन्टा चलता रहा और एक जीवन समाप्त हो गया यदि यह कानून के रखवाले  अपनी  ड्यूटी निभा देते तो एक फेमली अनाथ होने से बच जाती |
मगर हाय रे हमारे देश के कानून थाने -दर थाने नापते रहे मगर इंसानियत भूल गये |
क्या यही कानून है ?
 आल इस बेल |
जरा सोचो भाई |

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