रविवार, 25 जुलाई 2010

अब क्या होगा

मेरा grandson apne dada के  इण्डिया वापस  जाने पर कह रहा |
अब क्या होगा हमारा

आप की छाया में सुकून मिला

आप छोड़ रहे साथ हमारा

यह आखें सुबह से तलासेगी

आप की छाया

अब मै आप को जानने लगा हूँ

कुछ -कुछ पहचानने लगा हूँ

आप को क्या मेरी याद न आयेगी

मेरे  बिना क्या आप  रह पायगें

अब  क्या होगा

जब बहुत दूर चले जायेगे

तब मै किसके सहारे रहूँगा

इस  अबोध बालक को एक -एक बूंद दूध पिलाकर

नौ माह पार करा  दिया

अब  बचपन मेरा

दूसरे के हाथो में खेलेगा

मै दिन भर अकेला

आप की छाया को खोजूंगा

अब क्या होगा 

जब आप चले जायंगे

छोड़ मुझे अकेला 

छोड़ मुझे अकेला 

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

मूल का सूद

पुरानी कहावत है कि मूल से सूद प्यारा होता है |

यह सच मैने ६ माह में अनुभव किया वोह लिख कर पेश कर रहे है |  

जब वोह दिन आया

मूल का सूद मिला

खिल गया मन का कमल

प्यासी आखों  को

नई रोशनी मिली

जब पहली बार 

 इन हाथो ने  छूआ 

मन को राहत 

दिल को सुकून मिला 

एक एक पल 

नजरो ने शीतलता 

का  अनुभव किया

मन  गद-गद कर उड़ चला

जब किलकारिया

आँगन  में गुजंने लगी

जीवन में हर पल जीने की

चाह बढने लगी 

जब वो नन्हे -नन्हे

हाथो को फैलाता

करवट बदल -बदल 

सूनी  -सूनी  आखों से 

कुछ कह जाता 

मेरे साठ साल के जीवन में 

हर पल जीने का मजा आ गया 

धीरे -धीरे हर पल

उसको बढ़ते 

इन आखों ने देखा 

उस पल  आनन्द  का सुख 

जीवन के हर सुख से

अलग पा गया

जब वो कुछ -कुछ

मुसकरने लगा

नन्हे -नन्हे हाथो को

बढ़ाने लगा

तोतली जवान से

कुछ कहने लगा

इस पल   आखो से

खुशियों  का  सैलाब 

बह जाता 

जब वोह उल्ट पलट 

नन्हे -नन्हे

हाथो को फैलाता 

जब इन हाथो से

उसे गोद में उठाता 
उस पल जो सुख पाता 
वोह ही 
मूल का सूद कहलाता 

अब वो घुटनों के बल

कुछ दूर चल कर

फिर लुढक जाता

सूनी-सूनी आखों से

नन्हे हाथो से

इशारा कर

गोद में आने को

मचल जाता

वोह छड मेरा

सारे सुखों  की

हद पार कर जाता

यही पल

मूल का सूद कहलाता

अब वो नन्हे -नन्हे कदमो से

कुछ -कुछ दूरी चल कर

जब धम से

लुढ़क जाता

यह सीन देख कलेजा

मुहं को आ जाता

अरे कह कर

उसकी ओर दौड़ जाता

गोद में उठा कर

सीने से लगाता 

इस पल जो महसूस  होता

शब्दों में नहीं कह पाता

जो मूल के साथ की

घटना याद नहीं

इस सूद का स्वाद  

चखने में मजा आ रहा

वोही मूल का सूद

जीवन में और  जीने की

तमन्ना जगा रहा

भाई वोह मजा आ रहा

सूद  का स्वाद चखता जा रहा

अब वोह नौ माह पार कर

ठुमक -ठुमक कर

चलने की

कोशिश कर रहा

मन भारी

दिल बैठा जा रहा

यहाँ से अन्न जल

उठने जा रहा

यह सोच

आखों से सैलाब 

बहता जा रहा 

यही है
सूद के  स्वाद का रस
और मीठा होता जा रहा

( अधिकार सुरछित है  )
कमल मेहरोत्रा