रविवार, 10 नवंबर 2013

खामोश सी आँखे
क्या मन में तुम्हारे
खुली आँखों से तुम
किस को निहार रही हो
इस तरह बार -बार
तस्वीर मत बदलो
जैसी सुन्दर छवि है
मन से भी सुन्दर हो
जब खुद ख़ुदा मेहरवान हो
किसी पर
उसको किस बात की चिंता
खामोश सी तुम
मन में
क्या चित्र बना
रही हो
चेहरे से मासूम गुडिया सी दिखती हो
इन आँखों से देख लो जिसको
कत्ल बिन छूरी कर सकती हो
तुम  को खुद नहीं पता
कितनी मासूम दिखती हो
बालो को लहरा दो तो
सुनामी ला सकती हो
खामोश लव तुम्हारे
चहकती हुई फितरत हो
जिस खुदा ने बनाया
उसकी सुन्दर सी मूरत  हो
चेहरे से मासूम
गुड़िया सी दिखती हो
नज़र से शोख़
चंचल सी दिखती हो
खामोश चेहरा
सब क़ुछ वयां  कर देता है
किस चित्रकार ने यह
तस्वीर उतारी
उसकी तारीफ़ करूं 
या तुम्हें निहारूं