रविवार, 10 नवंबर 2013

खामोश सी आँखे
क्या मन में तुम्हारे
खुली आँखों से तुम
किस को निहार रही हो
इस तरह बार -बार
तस्वीर मत बदलो
जैसी सुन्दर छवि है
मन से भी सुन्दर हो
जब खुद ख़ुदा मेहरवान हो
किसी पर
उसको किस बात की चिंता
खामोश सी तुम
मन में
क्या चित्र बना
रही हो

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें