बुधवार, 12 जनवरी 2011

नये जवाने 
की मस्ती हूँ
नहीं  
मै सस्ती हूँ
भाव लगाना
नहीं
नये जवाने  
की मस्ती हूँ
नहीं
मै   सस्ती हूँ
भाव लगाना
नहीं
जान गवाना 
नहीं 
मस्ती में आना
नहीं
जान गवाना
नहीं......

नई जवानी हूँ
बोतल पुरानी हूँ

कल की बात सुनो  
मस्त थी रात सुनो

जाम से जाम लड़ाना
नहीं

नशे में आना
नहीं 

जाम से जाम लड़ाना
नहीं

जान गवाना 
नहीं 

मस्ती में आना 
नहीं........ 

सुबह  जब आँख खुली
राज की  बात खुली
रात की कहानी सुनाना
नहीं 

मस्ती में आना 
नहीं

मटके में नंबर
लगाना
नहीं 

रूपया गवाना
नहीं

मस्ती में आना 
नहीं 

आग का गोला हूँ
मस्त मौला हूँ

आंधी-तूफा हूँ 
बे मौत मरना  
नहीं 

नये जवाने 
की  मस्ती हूँ

नहीं
मै  सस्ती हूँ

भाव लगाना
नहीं

मस्ती में आना 
नहीं 

जान गवाना 
नहीं 

मटके पर  नंबर 
लगाना 
नहीं.....

कलेजा फूंक  
धुआं उड़ना
नहीं   

मस्ती में आना
नहीं

जान गवाना
नहीं

नये जवाने
की मस्ती हूँ

नहीं
मै   सस्ती हूँ

भाव लगाना
नहीं

मस्ती में आना
नहीं

हाथ लगाओगे    
जल जा ओ गे

धुआ- धुआ हो 
जा ओ गे 

शर्त लगाना
नहीं

मस्ती में आना 
नहीं...... 

आना नहीं.......

नये जवाने.......

(अधिकार सुरछित)
कमल मेहरोत्रा    

मंगलवार, 11 जनवरी 2011

मुन्नी बदनाम हुई  
हाथ में  बाम लेकर 

शीला जवान हुई
हाथ में  जाम  लेकर

मै बदनाम हुआ 
दोनों को दाम
दे कर

मुन्नी  बदनाम हुई
हाथ में  बाम लेकर

शीला जवान हुई
हाथ में  जाम लेकर

हाय अब क्या करूं
दोनों को दाम देकर 

शीला की मस्त जवानी 
मुन्नी की हुई बदनामी 

दोनों ने मिल कर 
नास किया 
मैने बरदास किया  
चक्कर में पड़  कर 

मै बदनाम हुआ   
दोनों का साथ  कर

 मुन्नी बदनाम हुई 
हाथ में बाम लेकर 

शीला जवान हुई
हाथ में जाम लेकर
(अधिकार सुरछित है )
कमल मेहरोत्रा 

कन्या का मूल्य

कन्या जब औरत बनती है

धीरे -धीरे समाज के
रूप रंग में ढलती है
बचपन बीता माँ के आँगन में
धीरे से जुम्मेदारी आई जवानी में

इस जुम्मेदारी निभाने को
बचपन बदल जाता है
माँ का आंगन छूट जाता

एक नया रिश्ता बन जाता है
जब एक बेटी माँ बन जाती
तब उसे बचपन याद आता है

माँ ने खून पसीना बहा
उसको इतना बड़ा किया
अब उसे भी
यह जुम्मेदारी निभानी है

माँ की एक -एक बात
उसके कानो में गूंजा करती
तब उनकी बात बेमानी लगती थी

आज उन पुरानी बातो को याद कर
उनका मर्म समझती है
इस स्रष्टि की रचना
कन्या से ही बढती है

जब यह कन्या ही नहीं रहेगी
तब स्रष्टि की रचना कौन करेगा
दुनिया नहीं समझती है

दुनिया नहीं समझती है
यही कन्या का मूल्य है
(अधिकार सुरछित है )
कमल मेहरोत्रा