रविवार, 1 अगस्त 2010

हाय रे मंहगाई

एक दिन सुबह -सुबह नानी "लौकी"
सज धज के चली जा  रही थी

सामने से "भिन्डी" रानी (सुकडी)
मुरझाई सी आ रही थी  

उधर से "कद्दू " बाबा
चेले "बैंगन"  के साथ आ धमके

पीछे-पीछे गोलू   "आलू "  
"मोलू"   "टमाटर " भी आ गये  

बाजार में आ कर  अपनी -अपनी दुकान सजाने लगे 
चिल्ला -चिल्ला कर भाव बताने लगे

"नानी" लौकी अपनी किस्मत पर इतरा रही थी
बार -बार स्वामी के गुण गा रही थी

एक वक्त था
उनकी की ओर कोई देखता भी न था
आज वह अपनी कीमत बता रही है
यह देख "भिन्डी" और सुकडी जा रही थी

बाजार में बड़ा सन्नाटा छा रहा था 
यह सब देख

"कद्दू " बाबा और चेला "बैगन" मुहं  छुपा रहे थे
"नानी" लौकी यह सब देख मुस्करा रही थी 

आज यह वक्त आ गया 
जो लोग इन्हें भर -भर के ले जाते 
वह इन्हें छू कर निकल जा रहे थे 
हाय रे मंहगाई  
हाय  रे मंहगाई