एक दिन सुबह -सुबह नानी "लौकी"
सज धज के चली जा रही थी
सामने से "भिन्डी" रानी (सुकडी)
मुरझाई सी आ रही थी
उधर से "कद्दू " बाबा
चेले "बैंगन" के साथ आ धमके
पीछे-पीछे गोलू "आलू "
"मोलू" "टमाटर " भी आ गये
बाजार में आ कर अपनी -अपनी दुकान सजाने लगे
चिल्ला -चिल्ला कर भाव बताने लगे
"नानी" लौकी अपनी किस्मत पर इतरा रही थी
बार -बार स्वामी के गुण गा रही थी
एक वक्त था
उनकी की ओर कोई देखता भी न था
आज वह अपनी कीमत बता रही है
यह देख "भिन्डी" और सुकडी जा रही थी
बाजार में बड़ा सन्नाटा छा रहा था
यह सब देख
"कद्दू " बाबा और चेला "बैगन" मुहं छुपा रहे थे
"नानी" लौकी यह सब देख मुस्करा रही थी
आज यह वक्त आ गया
जो लोग इन्हें भर -भर के ले जाते
वह इन्हें छू कर निकल जा रहे थे
हाय रे मंहगाई
हाय रे मंहगाई
रविवार, 1 अगस्त 2010
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