रविवार, 20 जून 2010

एक बेचारा

एक बेचारा हैट
अपनी तक़दीर
पर आसूं बहा रहा था
सड़क पर पड़ा
धक्के  खा रहा था
कभी कार
कभी बस
के टायरो के नीचे
कुचला जा रहा था
कभी सिर का
ताज हुआ करता था
आज अपनी तक़दीर पर
आसूं बहा रहा है
सडक पर कभी इधर
कभी उधर धक्के
खा रहा है
आते जाते लोग
सिर्फ शान से उसे
धकिया रहे है
बहुत देर से यह
नजारा मै दूर से
देख रहा था
एक भिकारी ने
उसे  बड़ी शान से
सिर पर लगाया
यह देख कर
मुझे चैन आया
हैट फिर मुस्कराया
एक बार फिर
सिर का ताज कहलाया

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