मंगलवार, 5 जुलाई 2011

चाँद क्यों अपना सा लगता

तारो की बरात ले 
दूल्हा सा दिखता
बादलो का सेहरा पहन
छुपता दीखता
बड़ा प्यरा
लगता
चाँद क्यों अपना सा लगता

तारो की बरात ले
सारे बराती इतरा रहे
टिम-टिम करते
बादलो को हटा रहे
खुश हो कर
इंद्र भी इत्र
बर्षा रहे
चाँद क्यों अपना सा लगता
उधर चांदनी
दुल्हन बनी
हाथ में वर माला लिए
दुल्हे की राह तकती
उंघती सी जा रही
चाँद क्यों अपना सा लगता
तारो की बरात ले

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