रविवार, 28 जुलाई 2013

मै बेचारा होटल
 पल -पल ढगा  जाता हूँ
जो भी मेरे  सम्पर्क आता
वही रौंद कर चला जाता है
मै  बेचारा  मूक दर्शक
सब कुछ सह कर
बेजान सा
अपनी किस्मत पर रोता हूँ
ढगा सा सब कुछ सहता  हूँ
फिर भी मुस्कराता हूँ
आने वाले का  फिर भी
welcome कृरता हूँ
फिर वह मेरे को रौंद
चलता फिरता है
मै बेचारा होटल
पल -पल सब कुछ
सहता हूं 

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